आलोक कौशिक के आलेख
*उत्तरायण उत्सव (मकर संक्रांति)* यह सत्य है कि मनुष्य के जीवन की दिशा और दशा में परिस्थितियों का बहुत बड़ा योगदान होता है। लेकिन खुशियों का संबंध मनुष्य की प्रकृति और उसके दृष्टिकोण से होता है। जीवन प्रतिपल परिवर्तित होता है। प्रत्येक दिन नवीन चीजें घटित होती हैं। नवीनता का बोध होना आवश्यक है। उससे भी आवश्यक है वर्तमान में जीना। खुशियों को भी किसी वस्तु में खोजने के बदले वर्तमान में खोजना चाहिए। वर्तमान में ही सुख पाया जा सकता है। उसी प्रकार हम जब चाहें उत्सव मना सकते हैं। हम जीवित हैं, हम स्वस्थ हैं, माता-पिता का साथ है, बारिश हो रही है, पंछी कलरव कर रहे हैं, ऐसे अनगिनत कारण हो सकते हैं उत्सव मनाने के। प्रत्येक क्षण में नूतनता है और नूतनता में उत्सव। वर्तमान ही सत्य है। जीवन के प्रत्येक क्षण का आनंद लेना ही उत्सव है। हम समय के अतीत और भविष्य पर जितना अधिक केंद्रित होते हैं उतना ही अधिक हम वर्तमान को खो देते हैं, जो सबसे मूल्यवान चीज है। राशि चक्र में परिवर्तन पृथ्वी की गति से होता है, जिसे सूर्य का परिवर्तन समझा जाता है। सूर्य के राशि परिवर्तन को संक्रांति कहा जाता है। ज