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आलोक कौशिक के आलेख

      *उत्तरायण उत्सव (मकर संक्रांति)* यह सत्य है कि मनुष्य के जीवन की दिशा और दशा में परिस्थितियों का बहुत बड़ा योगदान होता है। लेकिन खुशियों का संबंध मनुष्य की प्रकृति और उसके दृष्टिकोण से होता है। जीवन प्रतिपल परिवर्तित होता है। प्रत्येक दिन नवीन चीजें घटित होती हैं। नवीनता का बोध होना आवश्यक है। उससे भी आवश्यक है वर्तमान में जीना। खुशियों को भी किसी वस्तु में खोजने के बदले वर्तमान में खोजना चाहिए। वर्तमान में ही सुख पाया जा सकता है। उसी प्रकार हम जब चाहें उत्सव मना सकते हैं। हम जीवित हैं, हम स्वस्थ हैं, माता-पिता का साथ है, बारिश हो रही है, पंछी कलरव कर रहे हैं, ऐसे अनगिनत कारण हो सकते हैं उत्सव मनाने के। प्रत्येक क्षण में नूतनता है और नूतनता में उत्सव। वर्तमान ही सत्य है। जीवन के प्रत्येक क्षण का आनंद लेना ही उत्सव है। हम समय के अतीत और भविष्य पर जितना अधिक केंद्रित होते हैं उतना ही अधिक हम वर्तमान को खो देते हैं, जो सबसे मूल्यवान चीज है। राशि चक्र में परिवर्तन पृथ्वी की गति से होता है, जिसे सूर्य का परिवर्तन समझा जाता है। सूर्य के राशि परिवर्तन को संक्रांति कहा जाता है। ज

आलोक कौशिक के आलेख

      * पशुओं से बलात्कार : एक मानसिक विकार * अगर मैं कहूं कि बलात्कार एक मानुषिक प्रवृत्ति है तो शायद आप इसे मनुष्य का अपमान समझेंगे। लेकिन अगर आप इसे पाशविक प्रवृत्ति कहेंगे तो यह पशु का अपमान होगा, क्योंकि कोई पशु बलात्कार नहीं करता।नवजातों से, नाबालिगों से, युवतियों से, वृद्धाओं से, यहां तक कि लाशों से बलात्कार की खबरें आती रही हैं। अभी हाल ही में मधेपुरा जिला निवासी युवक मोहम्मद सिमराज ने पटना में एक गर्भवती बकरी से बलात्कार की घटना को अंजाम दिया। आरोप है कि बलात्कार के कुछ देर बाद ही गर्भवती होने के कारण बकरी की मृत्यु हो गई। आरोप यह भी है कि घटना के वक्त आरोपी युवक शराब के नशे में था, जबकि बिहार में शराबबंदी है। यह कोई पहला मामला नहीं है। ऐसे कई मामले काफी लंबे समय से आते रहे हैं जब इंसानों द्वारा पशुओं के साथ बलात्कार किया गया है। इन मामलों में धारा 377 एवं एनिमल क्रूएलिटी एक्ट के तहत केस दर्ज किया जाता है। किसी इंसान और जानवर के बीच इंटरकोर्स को बेस्टिएलिटी कहते हैं। भारत में यह एक दंडनीय अपराध है। बेस्टिएलिटी एक तरह की यौन हिंसा है जिसमें किसी पशु का इस्तेमाल यौन संतुष

आलोक कौशिक के प्रेमगीत

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*है मुझे स्मरण... जाने जाना जानेमन !* है मुझे स्मरण... जाने जाना जानेमन ! वो पल वो क्षण हमारे नयनों का मिलन जब था मूक मेरा जीवन तब हुआ था तेरा आगमन कलियों में हुआ प्रस्फुटन भंवरों ने किया गुंजन है मुझे स्मरण... जाने जाना जानेमन ! तेरा रूप तेरा यौवन जैसे खिला हुआ चमन चांद सा रौशन आनन चांदनी में नहाया बदन झूम के बरसा सावन फूलों में हुआ परागण है मुझे स्मरण... जाने जाना जानेमन ! तेरे पायल तेरे कंगन कभी छन-छन कभी खन-खन पड़ें जहां तेरे चरण खिल जायें वहां उपवन तू शास्त्रों का श्रवण तू मंत्रों का उच्चारण है मुझे स्मरण... जाने जाना जानेमन ! तेरा छुअन तेरा आलिंगन जैसे चंदन का चानन दे कर तुझे वचन बन गया तेरा सजन तेरे संग लगा के लगन तेरे प्यार में हुआ मगन है मुझे स्मरण... जाने जाना जानेमन ! वो अधरों का चुंबन हमारे सांसों का संलयन तेरे जिस्म की तपन मेरे तन की अगन अजब सा छाया सम्मोहन हम भूल गये त्रिभुवन है मुझे स्मरण... जाने जाना जानेमन ! तेरे मन का समर्पण मेरे प्यार का पागलपन सुनके तेरा सुमिरन मैंने दे दी धड़कन प्यार बन गया पूजन बना हर गीत भजन है म

आलोक कौशिक के आलेख

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   *प्राकृतिक आपदाएं: कितनी प्राकृतिक कितनी मानवीय* सभी आपदा मनुष्य द्वारा उत्पन्न माने जा सकते हैं। क्योंकि कोई भी खतरा विनाश में परिवर्तित हो, इससे पहले मनुष्य उसे रोक सकता है। सभी आपदाएं मानवीय असफलता के परिणाम हैं। मानवीय कार्य से निर्मित आपदा लापरवाही, भूल या व्यवस्था की असफलता मानव-निर्मित आपदा कही जाती है। एक प्राकृतिक आपदा जैसे ज्वालामुखी विस्फोट या भूकंप भी मनुष्य की सहभागिता के बिना भयानक रूप नहीं धारण करते हैं। यही कारण है कि निर्जन क्षेत्रों में प्रबल भूकंप नहीं आता है। आपदा एक प्राकृतिक या मानव निर्मित जोखिम का मिला-जुला प्रभाव है। आपदा शब्द, ज्योतिष विज्ञान से आया है। इसका अर्थ होता है कि जब तारे बुरी स्थिति में होते हैं तब बुरी घटनाएं घटती हैं। भारत जैसे विकासशील देश आपदा प्रबंधन की आधारभूत संरचना विकसित न होने का भारी मूल्य चुकाते हैं। जब जोखिम और दुर्बलता का मिलन होता है तब दुर्घटनाएं घटती हैं। जिन इलाकों में दुर्बलताएं निहित न हों वहां पर एक प्राकृतिक जोखिम कभी भी एक प्राकृतिक आपदा में तब्दील नहीं हो सकता है। एक प्राकृतिक आपदा एक प्राकृतिक जोखिम का ही परिण

आलोक कौशिक के आलेख

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                               *दिशाहीन छात्र राजनीति* राष्ट्र के रचनात्मक प्रयासों में किसी भी देश के छात्रों का अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान होता है। समाज के एक प्रमुख अंग और एक वर्ग के रूप में वे राष्ट्र की अनिवार्य शक्ति और आवश्यकता हैं। छात्र अपने राष्ट्र के कर्णधार हैं, उसकी आशाओं के सुमन हैं, उसकी आकांक्षाओं के आकाशदीप हैं। राष्ट्र के वर्तमान को मंगलमय भविष्य की दिशा में मोड़नेवाले विश्वास के बल भी हैं। देश की आंखें अपने इन नौनिहालों पर अटकी रहती हैं। समाज के इस वृहद् अंश की उपेक्षा न तो संभव है और न किसी भी मूल्य पर होनी ही चाहिए। उचित और अनुकूल संरक्षण में इन सुकुमार मोतियों को अखंड प्रेरणा-दीप, साधना-दीप में बदला जा सकता है। अनुकूल और विवेकसंगत नेतृत्व के अभाव में ये विध्वंस और असंतोष की आसुरी वृति से ग्रस्त हो उठते हैं। आजादी के पहले इनकी एक भिन्न भूमिका थी। स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों ने इनकी शक्ति का उपयोग विदेशी सत्ता के विरोध में किया। आह्वान और संघर्ष के पुनीत अवसरों पर छात्रों ने अपनी क्रांतिकारी भूमिका निभायी। आजादी के विभिन्न कारणों में समूह-शक्ति का महत

आलोक कौशिक की कविताएं

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            *कविताएं*  (1) *कुछ ऐसा करो इस नूतन वर्ष*  शिक्षा से रहे ना कोई वंचित  संग सभी के व्यवहार उचित  रहे ना किसी से कोई कर्ष  कुछ ऐसा करो इस नूतन वर्ष  भले भरत को दिलवा दो सिंहासन  किंतु राम भी वन ना जायें सीता संग  सबको समान समझो सहर्ष  कुछ ऐसा करो इस नूतन वर्ष  मिलें पुत्रियों को उनके अधिकार  पर ना हों पुत्रवधुओं पर अत्याचार  ईर्ष्या रहित हो हर संघर्ष  कुछ ऐसा करो इस नूतन वर्ष  मनुष्य महान होता कर्मों से  देश श्रेष्ठ होता हर धर्मों से  हो सदैव भारत का उत्कर्ष  कुछ ऐसा करो इस नूतन वर्ष            ....................           (2)  *कवि हो तुम* गौर से देखा उसने मुझे और कहा  लगता है कवि हो तुम  नश्तर सी चुभती हैं तुम्हारी बातें  लेकिन सही हो तुम  कहते हो कि सुकून है मुझे  पर रुह लगती तुम्हारी प्यासी है  तेरी मुस्कुराहटों में भी छिपी हुई  एक गहरी उदासी है  तुम्हारी खामोशी में भी  सुनाई देता है एक अंजाना शोर  एक तलाश दिखती है तुम्हारी आँखों में  आखिर किसे ढूंढ़ती हैं ये चारों ओर       

आलोक कौशिक की ग़ज़लें

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                                                         * ग़ज़लें * (1) किसी की मोहब्बत में खुद को मिटाकर कभी हम भी देखेंगे  अपना आशियां अपने हाथों से जलाकर कभी हम भी देखेंगे  ना रांझा ना मजनूं ना महिवाल बनेंगे इश्क में किसी के  महबूब बिन होती है ज़िंदगी कैसी कभी हम भी देखेंगे  मधुशाला में करेंगे इबादत ज़ाम पियेंगे मस्ज़िद में  क्या सच में हो जायेगा ख़ुदा नाराज़ कभी हम भी देखेंगे  प्रेम तो पर्याय होता है अनिश्चितकालीन प्रतीक्षा का  बनकर अपनी उर्मिला का लक्ष्मण कभी हम भी देखेंगे  कहते हो ख़ुदा की कोई जाति नहीं होती अच्छा मज़ाक है  ऐसा ही एक मज़ाक तेरे साथ करके कभी हम भी देखेंगे            ....................           (2) जुबां से कहूं तभी समझोगे तुम  इतने भी नादां तो नहीं होगे तुम  अपना दिल देना चाहते हो मुझे  मतलब मेरी जान ले जाओगे तुम  भड़क उठी जो चिंगारी मोहब्बत की  फिर वो आग ना बुझा पाओगे तुम  इश्क में सुकूं तभी मिलेगा जब  जिस्म से रूह में समाओगे तुम  प्यार करना कोई वादा न करना  वरना बेवफा कहलाओगे तुम  अब तो कहते